Thursday, June 23, 2016

पिवुजी री वाणी मत बोल पप्पया रै

सारांश - गीत में एक पक्षी पपैया जिसे प्रेम का प्रतीक माना जाता है, वह हर रोज एक प्रियशी के द्वार पर बैठकर चहचहाने लगता है। उसकी नटखट चहचाहट सुनकर प्रियशी उसे कहती है कि हे पप्पैया तुम अपनी ये चहक बंद कर दो या मुझे अपने प्रियतम से मिला दो, मेरा संदेश उन तक पहुंचा दो जो अभी परदेश गये हुए है। लिखने वाले ने भी  प्रियशी की मन: स्थिती  का क्या सजीव वर्णन इस गाने के माध्यम से किया है, वह आपको इस गाने के माध्यम से पता चलेगा।


"गीत"



चोंच कटाऊं पप्पैया थारी , ऊपर घालूं लूण ।
पिवुजी है मारा मैं हूं पिया री, तू रे कैवऴ वाऴौ कूण । 
पप्पैया रे .......  पियाजी री वाणी मत बोल।
जे कोई पियाजी री प्यारी सुणै रे, लेवै थारी पांख मरोड़
पप्पैया रे ..... पियाजी री वाणी मत बोल।

पियाजी ने पत्रीयां लिख भेजूं रे, उड़ पंछी ले जाय
जाय पियाजी ने यूं रे कयीजे, परणी धौन न खाय पिया रे
पियाजी री वाणी मत बोल।


थांरा वचन सुहावऴा रै, पिवजी मिला दे आज।
चौंच बणाऊ थारी सोवऴी रै, थू मारै सिर रौ ताज .... पप्पया रे
जे कोई पियाजी री प्यारी सुणे रे , लेवै थारी चोंच मरोड़ .... पप्पया रे
पियाजी री वाणी मत बोल।
मीरां दासी व्याकुल भयी रै, पियु पियु करै रे पुकार
बेगा मिलौ रै म्हारा अंतर यामी , बैगा मिलो रे म्हारा घट रा बासी । 
तुम  बिन रह्यौ नहीं जाय पियाजी , ऊबी मै सरवर तीर
नैणौं मे ढलकै नीर पियाजी ऊबी मैं सरवर तीर ।
सूती नै आवै नहीं नींदड़ली रै , झाकत नहीं रै सुहाय
पिवू है काळौ नाग जिवूं रै , लैवे कालजौ काड़ पियाजी
ऊबी मैं सरवर तीर पियाजी, नैणौं मे ढलकै नीर पियाजी

 
धुऴी धुकै जियूं कालजौ रै , जल जल गयौ रै शरीर
मछली जियूं तड़पत फिरूं रै , कब आवै समदर में शीर
ऊबी मैं सरवर तीर, नैणौं मे ढलकै नीर पियाजी
पतिवर्ताई पीर बसै रै , म्हारा पिवजी बसै रै परदेश
खान पान सब चनऴा मैं रखीया , कर लिया भगवा वेश पियाजी
ऊबी मै सरवर तीर, नैऴौं में छलकै नीर पियाजी



परमानंद जी महाराज के मुख से इस गाने का सजीव चित्रांत -






यही गीत प्रकाश माली, श्याम पालीवाल और कालूराम बीकानेरिया ने गाया